अमेरिका ने किया स्पष्टीकरण(डोनाल्ड ट्रंप वीज़ा पॉलिसी) : H-1B वीज़ा पर $100,000 फीस मौजूदा धारकों पर लागू नहीं होगी
संयुक्त राज्य अमेरिका (अमेरिका) ने अपनी नई H-1B वीज़ा पॉलिसी पर बड़ा स्पष्टीकरण दिया है। व्हाइट हाउस ने साफ किया है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लागू की गई $100,000 फीस केवल नए H-1B वीज़ा आवेदनों पर लागू होगी, मौजूदा धारकों या नवीनीकरण (renewals) पर नहीं।
यह घोषणा उस समय आई जब अमेरिकी वाणिज्य सचिव हावर्ड लुटनिक ने कहा था कि यह शुल्क हर साल लिया जाएगा और नए आवेदकों तथा नवीनीकरण दोनों पर लागू होगा। उनके बयान के बाद वीज़ा धारकों और टेक कंपनियों में अफरा-तफरी मच गई थी।

डोनाल्ड ट्रंप वीज़ा पॉलिसी
शुक्रवार रात राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस नए शुल्क को लागू करने के लिए एक्ज़ीक्यूटिव ऑर्डर पर हस्ताक्षर किए। यह आदेश रविवार सुबह 12:01 बजे से प्रभावी होगा और फिलहाल एक साल के लिए लागू रहेगा। जरूरत पड़ने पर इसे बढ़ाया भी जा सकता है।
H-1B वीज़ा अमेरिकी कंपनियों को विशेष कौशल वाले विदेशी प्रोफेशनल्स—जैसे इंजीनियर, वैज्ञानिक और IT विशेषज्ञ—को अमेरिका में काम पर रखने की अनुमति देता है। यह वीज़ा पहले तीन साल के लिए जारी किया जाता है और इसे छह साल तक बढ़ाया जा सकता है।
हर साल H-1B वीज़ा लॉटरी सिस्टम से जारी किए जाते हैं और इनमें से करीब 75% भारतीय नागरिकों को मिलते हैं।
व्हाइट हाउस का स्पष्टीकरण
विवाद बढ़ने पर व्हाइट हाउस प्रेस सेक्रेटरी कैरोलाइन लेविट ने स्पष्ट किया कि यह शुल्क केवल एक बार और प्रति-पिटीशन (per petition) लागू होगा।
“यह वार्षिक शुल्क नहीं है। यह केवल नए वीज़ा आवेदन पर एक बार लिया जाएगा,” लेविट ने कहा।
“जो लोग पहले से H-1B वीज़ा रखते हैं या देश से बाहर हैं, उन्हें अमेरिका लौटने पर $100,000 नहीं चुकाना होगा। यह केवल नए वीज़ा पर लागू होगा, न कि नवीनीकरण या मौजूदा धारकों पर।”
इस स्पष्टीकरण से हजारों विदेशी कर्मचारियों और उनके परिवारों को बड़ी राहत मिली है।
टेक कंपनियों और कर्मचारियों में घबराहट
स्पष्टीकरण से पहले अमेज़न, माइक्रोसॉफ्ट, मेटा और गूगल (Alphabet) जैसी बड़ी कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को अमेरिका में ही रहने या तुरंत लौटने की सलाह दी थी।
कई H-1B धारकों ने रिपोर्ट किया कि उन्होंने फ्लाइट कैंसिल की या कुछ ही घंटों में वापस लौट आए। कुछ लोग जो देश छोड़ने ही वाले थे, वे डर के कारण प्लेन से उतर गए।
इमिग्रेशन वकील एलन ओर्र ने इसे “बड़े पैमाने पर भ्रम” बताया। उनके अनुसार, नए या नवीनीकृत वीज़ा धारकों को अमेरिका न आने की सलाह दी गई, जिससे जॉब की जॉइनिंग डेट्स टल गईं और फ्लाइट व रहने की व्यवस्था कैंसिल करनी पड़ी।
भारत और अमेरिकी बिज़नेस समुदाय की प्रतिक्रिया
भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वह इस फैसले का अध्ययन कर रहा है। मंत्रालय ने चेतावनी दी कि इससे परिवारों पर मानवीय असर पड़ सकता है और अमेरिका से अपील की कि इन चुनौतियों का समाधान निकाला जाए।
इसी बीच, अमेरिकी चैंबर ऑफ कॉमर्स ने भी चिंता जताई। अपने बयान में कहा गया:
“हमें कर्मचारियों, उनके परिवारों और अमेरिकी नियोक्ताओं पर इसके असर की चिंता है। हम प्रशासन और अपने सदस्यों के साथ मिलकर इसके प्रभाव को समझने और आगे का रास्ता निकालने की कोशिश कर रहे हैं।”
H-1B वीज़ा का महत्व
H-1B प्रोग्राम अमेरिका की टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री के लिए बेहद अहम है। विदेशी टैलेंट की मदद से अमेरिकी कंपनियों ने सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट, इंजीनियरिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे क्षेत्रों में विश्व स्तर पर बढ़त बनाई है।
लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह प्रोग्राम अमेरिकी कर्मचारियों को नुकसान पहुंचाता है। कई विदेशी कर्मचारी $60,000 सालाना सैलरी पर काम करने को तैयार हो जाते हैं, जबकि अमेरिकी टेक वर्कर्स को आमतौर पर $100,000 से ज्यादा मिलते हैं।
इमिग्रेशन विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी बड़ी फीस लगाने से कंपनियाँ टैलेंट को अमेरिका लाने की बजाय नौकरियाँ विदेश में ही शिफ्ट कर देंगी। एलन ओर्र ने चेतावनी दी,
“अगर अगले साल से $100,000 शुल्क लागू हुआ, तो H-1B कर्मचारियों को रखना लगभग असंभव हो जाएगा। कई नौकरियाँ विदेश चली जाएँगी और इससे अमेरिका की प्रतिस्पर्धा कमज़ोर होगी।”
निचोड़
व्हाइट हाउस के ताज़ा स्पष्टीकरण ने साफ कर दिया है कि $100,000 H-1B वीज़ा फीस मौजूदा धारकों या नवीनीकरण पर लागू नहीं होगी। यह केवल नए आवेदनों पर एक बार के लिए वसूली जाएगी।
हालांकि इससे मौजूदा कर्मचारियों को राहत मिली है, लेकिन नए आवेदकों और टेक इंडस्ट्री के लिए भविष्य अनिश्चित बना हुआ है। अगर यह नीति एक साल से आगे बढ़ती है, तो इसका असर न सिर्फ अमेरिकी जॉब मार्केट पर पड़ेगा बल्कि भारत-अमेरिका रिश्तों पर भी गहरा प्रभाव डाल सकता है।